________________
{ ४६५)
* व्यवहार समकित के ६७ बोल.
इस पर बारह द्वारः- (१) सद्दहणा ४ (२) लिङ्ग ३ (३) विनय १० (४) शुद्धता ३ (५) लक्षण ५ (६) भूषण ५ (७) दूषण ५ (८) प्रभावना ८ (6) प्रागार ६ (१०) जयना ६ (११) स्थानक ६ (१२) भावना ६ ।
(१) सद्दहणा के चार भेदः-१ परतिर्थी से अ. धिक परिचय न करे (२) अधर्म पाखण्डियों की प्रशंसा न करे (३) अपने मत के पासत्था उसन्ना व कुलिङ्गी प्रा. दि की संगति न करे इन तीनों का परिचय करने से शुद्ध तत्व की प्राप्ति नहीं हो सक्ति (४) परमार्थ के ज्ञाता संवीग्न गीतार्थ की उपासना करके शुद्ध श्रद्धान धारण करे ।
(२) लिङ्ग के तीन भेदः-(१) जैसे युवा पुरुष रंग राग ऊपर राचे वैसे ही भव्यात्मा श्री जैन शासन पर राचे (२) जैसे क्षुधावान पुरुष खीर खाएड के भोजन का प्रेम सहित आदर करे वैसे ही वीतराग की वाणी का आदर करे (२) जैसे व्यवहारिक ज्ञान सिखने की तीत्र इच्छा होवे, और शिक्षक का योग मिलने पर सिख कर इस लोक में सुखी होवे वैसे ही वीतराग कथित सूत्रों का नित्य सूक्ष्मार्थ न्याय वाले ज्ञान को सिख कर इहलोक और परलोक में मनोवाञ्छित सुख की प्राप्ति करे।
(३) विनय के दश भेदः (१) अरिहंत का विनय
.
.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org