________________
बहुत्वः--सर्व से कम मिश्र योनीया--उससे अचेत योनीया असंख्यात गुणा और उस से सचित्त योनीया अनन्त गुणा । योनी तीन प्रकार की--संवुड़ा वियड़ा और संवुड़ावियड़ा संखुड़ा अर्थात् ढंकी हुई वियड़ा याने खुली ( उघाड़ी) हुई और संवुड़ा वियड़ा याने कुछ ढं की हुई और कुछ खुली हुई पांच स्थावर देवता और नारकी की योनी एक संवुड़ा, तीन विकलेन्द्रिय, समुच्चय तिथंच और मनुष्य में तीनों ही योनी पावे । संज्ञी तिर्थव और संज्ञी मनुष्य में योनी एक संवुडावियड़ा । इनका अल्प बहुत्व सर्वे से कम संवुड़ा वियड़ा उनसे वियड़ा योनीया असंख्यात गुणा । उनसे अयोनीया अनन्त गुणा । उनसे संवुड़ा योनीया अनन्त गुणा । योनी तीन प्रकार की है-संखा अयोत शंख के आकार समान । कच्छा याने कछुो के आकार समान और वंश पत्ता कहेता वांस के पत्र के समान । चक्रवर्ती की स्त्री रत्न की योनी शंख पत्। ऐसी योनी वाली स्त्री के संतान नहीं होती है ५४ सलाखा पुरुा की माता की योनी काचवे ( कछुवा ) के आकार समान होवे और सर्व मनुष्यों की माता की योनी वांस के पत्र के आकार समान होती है।
* इति श्री योनी पद सम्पूर्ण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org