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धम ध्यान।
(४७७)
नय से असंख्यात प्रदेशी अरुपी सदा सउपयोगी व चैतन्य रुप है । सर्व आत्मा निश्चय नय से ऐसी ही हैं । और व्यवहार नय से प्रात्मा अनादि काल से अचैतन्य जड़ वर्णादि २० रुप सहित पुद्गल के संयोग से त्रस व स्थावर रुप लेकर अनेक नृत्य कार नट के समान अनेक रुप वाली है ! वह त्रस का त्रसं रुप में प्रवर्ते तो जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट दो हजार सागर जाजरा तक रहे और स्थावर का स्थावर रूप में प्रवत तो जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट ( काल से ) अनन्ती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी व क्षेत्र से अनंता लोक प्रमाणे अलोक के आकाश प्रदेश होवे इतने काल चक्र उत्सर्पिणी अवसर्पिणी समझना । इस के असंख्यात पुद्गल परावर्तन होते हैं। आंगुल के असंख्यातवें भाग में जितने आकाश प्रदेश आव उतने असंख्यात पुद्गल परावर्तन होते हैं । स्थावर के अन्दर पुद्गल लेकर खला । यह व्यवहार नय से जानना । त्रस स्थावर में रह कर स्त्री पुरुष नपुंसक वेद में पुद्गल के संयोग में खेला, प्रवर्त हुवा व अनेक रूप धारण किये जैसे-किसी समय देवी रूप में भवनपत्यादिक से इशान देव लोक तक इन्द्र की इद्राणी सुरूपवन्ती अप्सरा हुई जघन्य १० हजार वर्ष उत्कृष्ट ५५ पन्योपम देवाङ्गना के रूप में अनन्ती वार जीव खेला । देवता रूप में भवनपत्यादिक से जाव नव ग्रीयवेक तक महर्षिक महा
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