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धर्म ध्यान ।
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अतः अज्ञानादिक आश्रव मार्ग का त्याग करके ज्ञानादिक संवर मार्ग का श्राराधन करें एवं तीर्थंकरों का उपदेश सुनने की रुचि उपजे । इसे उपदेश रुचि ( उवएस रुचि) तथा उगाढ रुचि भी कहते हैं।
धर्म ध्यान के चार अवलम्बन-वायणा, पूछणा, परियदृणा और धर्म कथा ।
१ वायणा-विनय सहित ज्ञान तथा निर्जरा के निमित्त सूत्र के व अर्थ के ज्ञाता गुर्वादिक के समीप सूत्र तथा अर्थ की वाचनी लेवे उसे वायणा कहते हैं।।
२ पूछणा-अपूर्व ज्ञान प्राप्त करने के लिए तथा जैन मत दीपाने के लिए, संदेह दूर करने लिए अथवा अन्य की परीक्षा के लिए यथा योग्य विनय सहित गुर्वादिक से प्रश्न पूछे उसे पूछणा कहते हैं।
३ परियट्टणा-पूर्व पठित जिन भाषित सूत्र व अर्थों को अस्खलित करने के लिए तथा निजेरा निमित्त शुद्ध उपयोग सहित शुद्ध अर्थ व सूत्र की बारंबार स्वाध्याय करे उसे परियट्टणा कहते हैं।
४ धर्म कथा-जैसे भाव वीतराग ने परुपे हैं वैसे ही भाव स्वयं अंगीकार करके विशेष निश्चय पूर्वक शङ्का, कंखा, वितिगच्छा रहित अपनी निजेरा के लिए व पर-उपकार निमित्त सभा के अन्दर वे भाव वैसे ही परुपे, उसे धर्म कथा कहते हैं। इस प्रकार की धर्म कथा कहने वाले तथा
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