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पांच देव ।
(४५५)
* पांच देव ( भगवती सूत्र, शतक १२ उद्देश है)
गाथा नाम गुण उवाए, ठी वीयु चयण संचीठणा, अन्तर अप्पा बहुयं च, नव भेए देव दाराए ।१॥
१ नाम द्वार, २ गुण द्वार, ३ उववाय द्वार ४ स्थिति द्वार ५ ऋद्धि तथा विक्रुवणा द्वार ६ चवन द्वार ७ संचिठण द्वार ८ अन्तर द्वार ६ अल्प बहुत्व द्वार ।
१ नाम द्वारः-१ भवि द्रव्य देव २ नर देव ३ धर्म देव ४ देवाधि देव ५ भाव देव ।
२ गुण द्वार:-मनुष्य तथा तिथंच पंचेन्द्रिय में से जो देवता में उत्पन्न होने वाले हैं उन्हें भवि द्रव्य देव कहते हैं २ चक्रवर्ती की ऋद्धि भोगने वालों को नर देव कहते हैं।
... चक्रवर्ती की सिद्धि का वर्णन
नव निधान, चौदह रत्न, चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख घोड़े, चौरासी लाख रथ, छन्नु कोड़ पायदल, बत्तीश हजार मुकुट बन्ध राजे, बत्तीश हजार सामानिक राजे, सोलह हजार देवता सेवक, चौसठ हजार स्त्री, तीन सो साठ रसोइये, वीश हजार सोना के प्रागर आदि
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