________________
(४५६)
थोकडा संग्रह।
३ धर्म देव के गुण:--आठ प्रवचन माता का सेवन करने वाले, नववाड़ विशुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले, दशविध यति धर्म का पालन करने वाले, बारह प्रकार की तपस्या करने वाले, सतरह प्रकार के संयम का आचरण करने वाले, यावीश परिषह को सहन करने वाले,सत्तावीश गुण सहित, तेतीश अशातना के टालने वाले, छन्नु दोष रहित आहार प.नी लेने वाले, को धर्म देव कहते हैं । ४देवाधिदेव के गुण:-चौतीश अतिशय सहित विराजमान पतीश वचन ( वाणी) के गुण सहित,चौसठ इन्द्र के द्वारा पूज्यनीक, एक हजार और अष्ट उत्तम लक्षण के धारक अट्ठारह दोष रहित व बारह गुणों सहित होते हैं उन्हें देवाधि देव कहते हैं । अहारह दोषों के नामः-१ अज्ञान २ क्रोध ३ मद ४ मान ५ माया ६ लोभ ७ रति ८ अरति ह निद्रा १० शोक ११ असत्य १२ चोरी १३ भय १४ प्राणि वध १५ मत्सर १६ राग १७ क्रीड़ा-प्रसंग १८ हास्य । १२ गुणों के नामः-१ जहां २ भगवन्त खड़े रहें, बैठे समोसरें वहां २ दश बोलों के साथ भगवन्त से बारह गुणा ऊंचा तत्काल अशोक वृक्ष उत्पन्न हो जाता है
और भगवन्त के मस्तक पर छाया करता है । २ भगवन्त जहां २ समोसरें वहां २ पांच वर्ण के अचेत फूलों की वृष्टि होती है जो गिरकर घुटने के बराबर ढेर लगा देते हैं । ३ भगवन्त की योजन पर्यन्त वाणी फैल कर सबों के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org