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थोकडा संग्रह।
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न्द्रिय और संज्ञी मनुष्य इन दो स्थान के आकर उत्पन्न होते हैं।
४ स्थिति द्वारः-१ भविद्रव्य देवकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की उत्कृष्ट तीन पल्य की । २ नर देव की जघन्य सातसौ वर्ष की उत्कृष्ट चौराशी लक्ष पूर्व की ३ धर्म देव की जघन्य अन्तर्मुहूर्त की उत्कृष्ट देश उणी (न्यून) पूर्व कोड़ की ४ देवाधि देव की जघन्य ७२ वर्ष की उत्कृष्ट ८४ लक्ष पूर्व की ५ भावदेव की जघन्य दश हजार वर्षे की उत्कृष्ट ३३ सागरोपम की।
५ ऋद्धि तथा विक्रुवणा द्वार:-भवि द्रव्य देव में जिन्हें वैक्रिय उत्पन्न होवे वो, नर देव को तो होती ही है, धर्म देव में से जिन्हें होवे वो और भाव देव के तो होती ही है एवं ये चारों वैक्रिय रूप करें तो जघन्य १, २, ३, उत्कृष्ट संख्याता रूप करे, शक्ति तो असंख्याता रूप करने की है । परन्तु करे नहीं देवाधि देव की शक्ति अत्यन्त है परन्तु करे नहीं।
६ वचन द्वारः-१ भवि द्रव्य देव चव कर देवता होवे २ नर देव चव कर नरक जावे ३ धर्म देव चव कर वैमानिक में तथा मोक्ष में जावे ४ देवाधिदेव मोक्ष में जावे ५ भाव देव चवकर पृथ्वी अप, वनस्पति बादर में और गर्भज मनुष्य तिर्यच में जावे ।
७ संचिठणा द्वारः-सचिठणा अर्थात् क्या ? देव
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