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नक्षत्र और विदेश गमन ।
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रस बनता है ! तदनन्तर वे उपभोग में लिए जाते इसे-शकुन वाधा-कहते हैं । इनका मतलब ज्ञानी ही जानते हैं उन के सिवाय अज्ञानी प्राणी इस सर्वोत्तम तत्व को मिथ्याभिमान की परिणति तरफ प्रवृत्त कर के उपजीविका के साधन रूप उनका गैर उपयोग करते हैं। यह अज्ञानता का लक्षण है।। __ अठावीश नक्षत्रों में पहला नक्षत्र अभीच है इस के तारे तीन हैं जिन का गाय के मस्तक तथा मुख समान आकार होता है । उत्तम जाति के स्वादिष्ट व सौरभ दार ( सुगन्धित ) वृक्ष के कुसुमों का उपभोग करके अर्थात् गुलकन्द खाकर गमन करने से अनेक लाभ होते हैं । (१) अन्य मन से अश्वनी नक्षत्र प्रथम गिना जाता है। यह बहसूत्री गम्य है ।(२)दूसरे श्रवण नक्षत्र के तीन तारे हैं । आकार काम धेनु ( कावड़ । समान है । इसके योग में खीर खाण्ड खाकर पश्चिम सिवाय अन्य तीन दिशाओं में जाने से इच्छित कार्य की सिद्धि होती है । ( ३) तीसरे धनिष्टा नक्षत्र के पांच तारे हैं। इसका अकार तोते के पिंजरे समान है। इसके संयोग से मक्खण आदि खा कर दक्षिण सिवाय अन्य दिशाओं में गमन करने से कार्य सफल होता है। (४) शतभीखा नक्षत्र के सौ तारे हैं । इसका आकार बिखरे हुवे फूल के समान है इस के योग पर सारे (पाखे ) तुवर का भोजन
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