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गभ विचार।
(४४७ )
व्रत धारण करने वाली सगर्भा माताओं के पुत्र पुत्रिय जन्म लेकर उछरते हैं। इनकी जन्म क्रिया भी वैसी ही होती है । अन्तर केवल इतना कि इन पर माता पिता के स्वभावों की छाया पड़ी हुई होती है । इस प्रकार की माताओं के स्वभाव का पान करके योग्य उम्र वाले पुत्र पुत्रियें भी अपने २ पुन्यों के अनुसार सर्व वैभव का उपभोग करते हैं । इतना होते हुवे भी अपने माता पिता के साथ विनय का व्यवहार करते हैं गुरु जनों के प्रति भक्ति का व्यवहार करते हैं, लजा दया, क्षमादि गुणों में और प्रभु प्रार्थना में आगे रहते हैं। अभिमान से विमुख रह कर मैत्री भाव के सम्मुख रहते हैं जीवन योग्य सत्संग करके ज्ञान प्राप्त करते हैं। और शरीर सम्पत्ति आदि की ओर से उदास रहकर आत्म स्मरण में जीवन पूर्ण करते हैं।
अतः सर्व विवेक दृष्टि वाले स्त्री पुरुषों को इस अशुचि पूर्ण गन्दे शरीर की उत्पति पर ध्यान दे कर ममता घटानी चाहिये, मिथ्याभिमान से विमुख रहना चाहिये, मिली हुई जिन्दगी को सार्थक करने के लिये सत्कर्म करने चाहिये कि जिससे उपरोक्त गर्भवास के दुखों को पुनः प्राप्त नहीं करना पड़े एक सत् पुरुष को मन वचन और कर्म से पवित्र होना चाहिए।
॥ इति गर्भ विचार सम्पूर्ण ॥
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