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( ४३८ )
थोकडा संग्रह |
आदि नवद्व र अपवित्र और सदा काल बहते रहते हैं । और स्त्री के दो थन (स्तन) और एक गर्भ द्वार ये तीन मिल कर कुल बारह द्वार सदाकाल वहते रहते हैं ।
शरीर के अन्दर अठारह पृष्ट दण्डक नामकी पांसलिये हैं । जो गर्भवास की करोड़ के साथ जुड़ी हुई है । इनके सिवाय दो वांसे की बारह कंडक पांसलियें हैं कि जिनके ऊपर सात पुड़ चमड़े के चढ़े हुये होते हैं। छाती के पड़दे में दो ( कलेजे ) हैं जिनमें से एक पड़दे के साथ जुड़ा हुवा है और दुसरा कुछ लटकता हुवा है । पेट के पड़दे में दो अंतस ( नल ) हैं जिनमें से स्थूल नल मलस्थान है और दूसरा सूक्ष्म लघु नीत का स्थान है । दो प्रणव स्थान अर्थात् भोजन पान पर गमाने ( पचाने ) की जगह हैं। दक्षिण पर गमे तो दुःख उपजे व बांये पर ग तो सुख । सोलह आँतरा है, चार अंगुल की ग्रीवा है | चार पल की जीभ है, दो पल की आंखे हैं, चार पल का मस्तक है। नवांगुल की जीभ है, अन्य मान्यतानुसार सात आंगुल की है। आठ पल का हृदय है पच्चीश पल का कलेजा है । अब सात धातु का प्रमाण व माप कहते हैं शरीर के अन्दर एक बड़ा (टेढ़ा ) रुधिर का और आधा आड़ा मांस का होता है । एक पाथा मस्तक का भेजा, एक आढ़ा लघुनीत, एक पाथा बड़ी नीत का है । कफ, पित्त, और श्लेष्म इन तीनों का एकेक कलव और
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