________________
गर्भ विवार।
(४३१)
vvvvvvvvVI
ARAMVwnAvvv
आधा कलव वीर्य का होता है । इन सबों को मूल धातु कहते हैं कि जिन पर शरीर का टिकाव है । ये सातों धानु जब तक अपने वजन प्रमाण रहते हैं तब तक शरीर निरोगी
और प्रकाश मय रहता है। उनमें कमी सी होने से शरीर तुरन्त रोग के आधीन हो जाता है।
नाड़ी का विवेचन-शरीर के अन्दर योग शास्त्र के अनुसार ७२००० नाड़िये हैं । जिनमें से नवसो नाड़ियें बड़ी है, नव नाड़ी धमण के समान बड़ी हैं जिनके धड़कन से रोग की तथा सचेत शरीर की परीक्षा होती है। दोनों पांव की घुटी के नीचे दो नाड़ी, एक नाभी की, एक हृदय की, एक तालबे की दो लमणे की और दो हाथ की एवं नव । इन सर्व नाड़ियों का मूल सम्बन्ध नाभि से है । नाभि से १६० नाड़ी पेट तथा हृदय ऊपर फैलकर ठेठ ऊंचे मस्त 6 तक गई हुई हैं । इनके बन्धन से मस्तक स्थिर रहता है । ये नाड़िये मस्तक को नियम पूर्वक रस पहुंचाती हैं जिससे मस्तक सतेज आरोग्य और तर रहता है । जब नाड़ियों में नुकसान होता है तब आंख, नाक कान और जीभ ये सब कमजोर रोगिष्ट बन जाते हैं व शून, गुमड़े श्रादि व्याधियों का प्रकोप होने लगता है। ___दूसरी १६० नाडी नाभी के नीचे चली हुई हैं जो जाकर पांव के तलीये तक पहुंची हुई हैं। इनके आकर्षण से गमनागमन करने, खड़े होने व बैठने आदि में सहा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org