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(४३०)
थोकडा संग्रह।
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में आकर उत्पन्न होता है पायखाने से भी अधिक यह नित्य अखूट कीच से भरा हुवा है यह गर्भावास नरक के स्थान का भान कराता है व इसी प्रकार इस में उत्पन्न होने वाला जीव नेरिये का नमूना रूप है । अन्तर केवल इतना ही है कि नरक में छेदन, भेदन, ताड़न, तजेन, खण्डन, पीसन और दहन के साथ २ दश प्रकार की क्षेत्र वेदना होती है वह गर्भ में नहीं परन्तु गति के प्रमाण में भयङ्कर कष्ट और दुख है। उत्पन्न होने की स्थिति तथा गर्भ स्थान का विवेचन ।
शिष्य-हे गुरु ! गर्भस्थान में आकर उत्पन्न होने वाला जीव वहां कितने दिन, कितनी रात्रि, तथा कितने मुहूर्त तक रहता है ? और उतने समय में कितने श्वासोश्वास लेता है ?
गुरु-हे शिष्य ! उत्पन्न होने वाला जीव २७७॥ अहो रात्रि तक रहता है। वास्तविक रूप से देखा जाय तो गर्भ का काल इतना ही होता है । जीव ८, ३२५ मुहूर्त गर्भस्थान में रहता है । और १४,२०, २२५ श्वासो श्वास लेता है। इसमें भी कमी-बेसी होती है ये सब कर्म विपाक का व्याघात समझना । गर्भ स्थान के लिये यह समझना चाहिये कि माता के नाभि मंडल के नीचे फूल के प्राकार वत दो नाडिये हैं। इन दोनों के नीचे उंधे फूल के आकार
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