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गर्भ विचार ।
( ४३१)
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वत् एक तीसरी नाडी है कि जो योनि नाडी कह लाती है जिसमें जीव के उत्पन्न होने का स्थान है । इस योनि के अन्दर पिता तथा माता के पुल का मिश्रण होता है । योनि रूप फूल के नीचे आम की मंजरी के आकार एक मांस की पेशी होती है जो हर महीने प्रवाहित होने से स्त्री ऋतु धर्म के अन्दर आती है। यह रूधिर ऊपर की योनि नाडी के अन्दर ही आया करता है कारण कि वो नाडी खुली हुई ही रहती है । चोथे दिन ऋतुश्राव बन्द होजाता है । परन्तु अभ्यन्तर में सूक्ष्म श्राव रहता है । स्नान करने पर पवित्र होता है । पांचवे दिन योनि नाडी में सूक्ष्न रुधिर का योग रहता है उस समय यदि वीयावेन्दु की प्राप्ति होवे तो उतने समय के लिये वो मिश्र योनि कहलाती है और यह फल प्राप्ति के योग्य गिनी जाती है । यह मिश्रपना बारह मुहूर्त पर्यन्त रहता है। कि जिस अवधि में जीव की उत्पत्ति हो इस में एक दो तीन
आदि नब लाख तक उत्पन्न हो सकते हैं। इनका श्रायुष्य जघन्य अन्तर्मुहूते उत्कृष्ट तीन पल्यापम का । इस जीव का पिता एक ही होता है परन्तु अन्य अपेक्षा से नवसो पिता तक शास्त्र का कथन है । यह संयोग से संभव नहीं है परन्तु नदी के प्रवाह के सामने बैठ कर स्नान करने के समय उपरवाड़े से खिंच कर आये हुवे पुरुष बिन्दु (वीर्य) में सैंकड़ों रजकण स्त्री के शरीर में पिचकारी के आकर्षण
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