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थोकडा संग्रह।
रूप फूल में सुगन्ध की तरह जीव रह सक्त हैं यह दूसरी शरीर पर्याप्ति कहलाती है इस अकृति को बाधने में एक अन्त हूर्त लगता है (२) इस शरीर के दृढ बन जाने पर उसमें इन्द्रियों के अवयव प्रगट होते हैं । ऐसा होने में अन्तहिते क समय लगता है यह तीसरी इन्द्रिय पर्याप्ति कहलाती है। ३) उक्त शरीर तथा इन्द्रिय दृढ होने पर सूक्ष्म रूप से एक अन्र्मुहूर्त में पवन की धमण शुरू होती है यह से उस जीव के आयुष्य की गणना की जाती है यह चौथ श्व सोश्वास पर्याप्ति के हलाता है (४) पश्च व एक अन्तःहूर्त में न द पैद होता है । यह पाँचवीं भाषा पयोप्ति कहलाती है (५) उपगेका पांव पर्याप्ति के समय पर्यन्त मन चक्र ी मजबूती होती है । उनमें से मन स्फुरण हो कर सुगन्ध की तरह बाहर आता है उसमें से शरीर की स्थिति के प्रमाण में सूक्ष्म रीति से अमुक पदार्थों के रज कण आकर्षित करने योग्य शक्ति प्राप्त होती है। यह छट्ठी मन पर्याप्ति कहलाती है (६) उक्त रीति से ६ अन्तर्मुहूर्त में ६ पयोप्ति का बन्ध होता है यह सुन कर शिष्य को शङ्का होती है कि शास्त्रकार ६ पर्याप्ति का बन्ध होने में एक अन्तर्मुहूर्त बतलाते हैं यह कैसे ?
गुरु-हे वत्स ! सारा मुहूर्त दो घड़ी का होता है। इसका एक ही भेद है । परन्तु अन्तर्मुहू के जघन्य मध्या और उत्कृष्ट एवं तीन भेद होते हैं दो समय स लगाई
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