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पर्याप्ता तथा पर्याप्ता द्वार |
( ४२५ )
नव समय पर्यन्त की जघन्य अन्त मुहूर्त कह लाती है (१) तदन्तर अन्तर्मुहूर्त दस समय की इग्यारह समय की, एवं एकेक समय गिनते हुवे अन्तर्मुहूर्त के असंख्यात भेद होते हैं ( २ ) और दो घडी (पहर ) में एक समय शेष रहे तब वो उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है ( ३ ) छ: पर्याप्ति का बन्ध होने में छः अन्तर्मुहूर्त लगते हैं । इससे जघन्य और मध्यम अन्तर्मुहूर्त समझना | और अन्त में छः पर्याप्ति में जो एक अन्तर्मुहूर्त लगता है उसे उत्कृष्ट समझना । उक्त छः पर्याप्ति में से एकेन्द्रिय के चार ( प्रथम ) होती हैं । द्वि-इन्द्रिय, त्रि-इन्द्रिय, चोरिन्द्रिय व असंज्ञी मनुष्य तथा तिर्यच पंचेन्द्रिय के पांव | और संज्ञी पंचेन्द्रिय के ६ पर्याप्ति होती हैं !
अपर्याप्ता का अर्थ
अपर्याप्ता के दो भेद - १ करण अपर्याप्ता २ लब्धि अपर्याप्ता । १ करण अपर्याप्ता के दो भेद-त्रिइन्द्रिय वाले पर्या बन्ध कर न रहे वहां तक करण अपर्याप्ता और बन्ध कर रहे तब करण पर्याप्ता कहलाती है लब्धि पर्याप्ता के दो भेद एकेन्द्रिय से लगा कर पंचेन्द्रिय पर्यन्त, जिसके जितनी पर्याय होती है, उसके उतनी में से एकेक की अधूरी रहे, वहां तक लब्धि अपर्याप्ता कहलाती है । और अपनी जाति की हद तक पूरी बन्ध
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