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( २४८ )
थोकडा संग्रह।
करे तो अशातना ( १७ ) गुरु आदि के साथ अथवा अन्य साधु के साथ अन्नादि वेहर कर लावे और गुरु व वृद्ध आदि को पूछे बिना जिस पर अपना प्रेम है उसे थोड़ा २ देवे तो अशातना (१८) गुरु आदि के साथ आहार करते समय अच्छे २ पत्र, शाक, रस रहित मनोज्ञ भोजन जल्दी से करे तो अशातना (१६) बड़ों के बोलाने पर सुनते हुवे भी चुप रहे तो अशातना (२०) बड़ों के बोलाने पर अपने आसन पर बैठा हुवा 'हां' कहे परन्तु काम का कहेगें इस भय से बड़ों के पास जावे नहीं तो अशातना ( २१ ) बड़ों के बुलाने पर श्रावे और आकर कहे कि क्या कहते हो ' इस प्रकार बड़ों के साथ अविनय से बोले तो अशातना (२२) बड़े कहें कि यह काम करो तुम्हें लाभ होगा तब शिष्य कहे कि आप ही करो, आपको लाभ होगा तो अशातना (२३) शिष्य बड़ों के कठोर, कर्कश भाषा बोले तो अशातना ( २४ ) शिष्य गुरु आदि बड़ों से, जिस प्रकार बड़े बोले वैसे ही शब्दों से, वार्तालाप करे तो अशातना (२५) गुरु आदि धार्मिक व्याख्यान वांचते होवे उस समय सभा में जाकर कहे कि ' आप जो कहते हों वो कहां लिखा है। इस प्रकार कहे तो अशातना (२६) गुरु आदि व्याख्यान देते हों उस समय उन्हें कहे कि आप बिलकुल भूल गये हो तो अशातना (२७)
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