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पांच ज्ञान का विवेचन ।
( २५३ )
वे इन्द्रिये ग्रहण करें-सरावले के दृष्टान्त समान-वो व्यंजनावग्रह कहलाता है।
चक्षु इन्द्रिय और मन ये दो रूपादि पुद्गल के सामने जाकर उन्हें ग्रहण करें इसलिये चतुइन्द्रिय और मन इन दो के व्यंजनावग्रह नहीं होते हैं, शेष चार इन्द्रियों का व्यंजनावग्रह होता है। श्रोत्रेन्द्रिय व्यंजनावग्रह-जो कान के द्वारा शब्द
के पुद्गल ग्रहण करे । घ्राणेन्द्रिय व्यंजनावग्रह-जो नासिका से गन्ध
के पुद्गल ग्रहण करे । रसेन्द्रिय व्यंजनावग्रह-जो जिह्वा के द्वारा रस
__ के पुद्गल ग्रहण करे । स्पर्शेन्द्रिय व्यंजनाग्रह-जो शरीर के द्वारा स्पर्श
के पुद्गल ग्रहण करे। व्यंजनावग्रह को समझाने के लिये दो दृष्टान्त
१ पडिबोहग दिठतेणं २ मल्लग दिठंतेणं
१ पडिबोहग दिठतेणं:-प्रति बोधक ( जगाने का ) दृष्टान्त जैसे किसी सौते हुवे पुरुष को कोई अन्य पुरुष बुलाकर आवाज देवे 'हे देवदत्त' यह सुनकर वो जाग उठता है और जाग कर 'हूं' जवाब देता है । तब शिष्य शंका उत्पन्न होने पर पूछता है 'हे स्वामिन् ! उस पुरुष नहुकारा दिया तो क्या उसन एक समय क,
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