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श्रोता अधिकार।
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दूसरे प्रकार का-जोंक नामक जन्तु फोड़ा के ऊपर रखने पर उसमें चोट मारकर दुःख पैदा करता और बिगड़े हुए खून को पीता है बाद में शांति पैदा करता है। इसी तरह से कोई विनीत शिष्य श्रोता आचार्यादिक के साथ रहता हुआ पहिले तो वचन रूप चोट को मारे, समय असमय बहुत अभ्यास करता हुआ मेहनत करावे पीछे संदेह रूपी मैल को निकाल कर गुरुओं को शांति उपजावे--परदेशी राजा के समान यह ग्रहण करने योग्य है।
१० बिडाल-जैसे बिल्ली दूध के वर्तन को सीके से जमीन पर पटक कर उसमें मिली हुई धूल के साथ २ दूध को पीती है उसी तरह कोई श्रोता आचार्यादिक के पास से सूत्रादिक का अभ्यास करते हुए बहुत अविनय करे,
और दूसरे के पास जाकर प्रष्ण पूछ कर सूत्रार्थ को धारण करे परंतु विनय के साथ धारण नहीं करे इसलिए ऐसा श्रोता त्यागने योग्य है।
११ जाहग-सहलो यह एक तिर्यंच की जाति विशेष्य का जीव है यह पहले तो अपनी माता का दूध थोडा थोडा पीता है और फिर वह पचजाने पर और थोड़ा इस तरह थोड़े थोड़े दूध से अपना शरीर पुष्ट करता है पीछे बड़े भारी सर्प का मान भंजन करता है । इसी तरह कोई श्रोता आचार्यादिक के पास से अपनी बुद्धि माफिक समय समय पर थोड़ा थोड़ा सूत्र अभ्यास करे और
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