________________
( ३६० )
थोकडा संग्रह।
ले कर सायङ्काल को गाँव जाते समय चोरों ने उन्हें लूट लिया । अत्यन्त निराश हुवे, लोगों के पूछने पर सर्व वृत्तान्त कहा जिसे सुन कर लोगों ने उन्हें बहुत ही ठपका दिया । वैसे ही गुरु के द्वारा व्याख्यान में दिये हुवे उपदेश ( सार घी ) को लड़ाई झगड़ा करके ढोल दिया व अन्त में चले रा करके दुर्गति को प्राप्त करे यह श्रोता छोड़ने योग्य है।
दूसरा प्रकार-घी भर कर शहर में जाते समय बर्तन उतारने पर फूट गया, फूटते ही दोनों स्त्री पुरुषों ने मिल कर पुनः भाजन में घो भर लिया । बहुत नुकसान नहीं होने दिया । घी को बेंचकर पैसे सीधे किये व अच्छा संग करके गांव में सुख पूर्वक अन्य सुज्ञ पुरुषों के समान पहोंच गये, वैसे ही विनीत शिष्य ( श्रोता ) गुरु के पास से वाणी सुनकर व शुद्ध भान पूर्वक तथा अर्थ सूत्र को धार कर रखे सांचवे । असवलित करे, विस्मृति हावे तो गुरु के पास से पुनः२ क्षमा मांग कर धारे, पूछ परन्तु क्लेश झगड़ा करे नहीं । गुरु उन पर प्रसन्न हवे, संयम ज्ञान की वृद्धि होवे, व अन्त में सद्गति पावे यह श्रोता आदरणीय है।
॥ इति श्रोता अधिकार सम्पूर्ण ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org