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(२६६)
थोकडा संग्रह।
दिक गुणों के साथ अणगार को जो उत्पन्न होता है वो क्षायोपशभिक ।
अवधिज्ञान के ( संक्षप में) छः भेद-१ अनुगामिक २ अनानुगामिक ३ वर्ध मानक ४ हाय मानक ५ प्रति पाति ६ अप्रतिपाति १
१ अनुगामिक-जहां जावे वहां साथ आवे (रहे) यह दो प्रकार का--१ अन्तःगत २ मध्यगत ।
(१) अन्तः गत अवधिज्ञान के ३ भेद:--(१) - पुरतः अन्तः गत--(पुरो अन्तगत) शरीर के आगे के भाग के क्षेत्र में जाने व देख।
(२) मार्गत: अन्त: गत ( मग्गो अन्तगत) शरीर के पृष्ट भाग के क्षेत्र में जाने व देखे।
(३) पाश्वज्ञः अन्तःगत-शरीर के दो पाव भाग के क्षेत्र में जाने व देखे।
अन्तःगत अवधिज्ञान पर दृष्टान्तः जैसे कोई पुरुष दीप प्रमुख अग्नि का भाजन व मणि प्रमुख हाथमे लेकर आगे करता हुवा चले तो आगे देखे, पीछे रख कर चले तो पीछे देखे व दोनों तरफ रख कर चले तो दोनों तरफ देखे व जिस तरफ रक्खे उधर देखे दूसरी तरफ नहीं । ऐसा अवधिज्ञान का जानना । जिस तरफ देखे जाने उस तरफ संख्याता, असंख्याता योजन तक जाने देखे।
(२) मध्य गत-यह सर्व दिशा व विदिशाओं में
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