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तेंतीश पदवी।
( २८३)
१ स्त्री रत्न विद्याधरों की श्रेणी में उत्पन्न होती है।
१ गज रत्न २ अश्व रत्न ये दोनों रत्न वैताढ्य पर्वत के मूल में उत्पन्न होते हैं।
चौदह रत्नों की अवगाहना १ चक्र रत्न २ छत्र रत्न ३ दण्ड रत्न ये तीन रत्न की अवगाहना एक धनुष्य प्रमाण, चर्म रत्न की दो हाथ की, खङ्ग रत्न पचास अङ्गुल लम्बा १६ अंगुल चौड़ा और श्राधा अंगुल जाड़ा होता है और चार अंगुल की मुष्टि होती है । मणि रत्न चार अंगुल लम्बा और दो अंगुल चौड़ा व तीन कोने वाला होता है । काकण्य रत्न चार अंगुल लम्बा चार अंगुल चौड़ा चार अंगुल ऊंचा होता है इसके छः तले,पाठ कोण,बारह हांसे वाला आठ सोनैया जितना वजन में व सोनार के एरण समान आकार में होता है ।
सात पंचेन्द्रिय रत्न की अवगाहना १ सेना पति २ गाथा पति ३ वाधिक ४ परोहित इन चार रत्नों की अवगाहना चक्रवर्ती समान । स्त्री रत्न चक्रवर्ती से चार पाङ्गुल छोटी होती है।
गज रत्न चक्रवर्ती से दुगना होता है । अश्व रत्न पूंछ से मुख तक १०८ पाङ्गुल लम्बा । खुर से कान तक ८० आङ्गुल ऊंचा, सोलह श्राङ्गुल की जंघा, वीश आङ्गुल की भुजा, चार पाङ्गुल का घुटना चार पाङ्गुल के खुर
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