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रूपी अरूपी का बोल।
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२३ अवग्रह २४ इहा २५ अवाप्त २६ धारणा; चार संज्ञा२७ श्राहार संज्ञा २८ भय संज्ञा २६ मैथुन संज्ञा ३० परिग्रह संज्ञा; एंचास्तिकाय-३१ धर्मास्तिकाय ३२ अधमास्ति काय ३३ आकाशास्ति काय ३४ काल और ३५ जीवास्ति काय, पांच उठाण-३६ उत्थान ३७ कम ३८ वीय ३६ वल और ४० पुरुषाकार पराक्रम ६ भाव लेश्या-४६, और तीन दृष्टि-४७ समाति दृष्टि ४८ मिथ्या दृष्टि ४६ मिश्र दृष्टि ।४।
गाथादंसण नाण सागस अणागारा चउवीसे दंडगा जीव; ए सव्वे अवन्ना अरूवी अकासगा चेव ॥५॥
अर्थ-दर्शन चार-५० चक्षु दर्शन ५१ अचक्षु दर्शन ५२ अवधि दर्शन ५३ केवल दर्शन, ज्ञान पांच५४ मति ज्ञान ५५ श्रुत ज्ञान ५६ अवधि ज्ञान ५७ मनः पर्यव ज्ञान ५८ केवल ज्ञान ५६ ज्ञान का उपयोग सो साकार उपयोग ६० दर्शन का उपयोग सो अनाकार उप योग६१ चरवीशही दण्डक के जीव । ___ एवं सर्व ६१ बोल में वर्ण, गन्ध, रस स्पर्श कुछ नहीं पावे कारण कि ये सर्व बोल अरूपी के हैं।
॥ इति रूपी अरूपी का बोल सम्पूर्ण ॥
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