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पांच ज्ञान का विवेचन ।
( २७३)
ज्ञान से देखे पश्चात् नष्ट हो जावे उत्कृष्ट लोक प्रमाण क्षेत्र देखने बाद नष्ट होवे जैसे दीप पवन के योग से बुझ जाता है वैसे ही यह प्रति पाति अवधि ज्ञान नष्ट हो जाता है ।
६ अप्रति पाति (अपडिवाई ) अवधि ज्ञान:जो पाकर पुनः जावे नहीं यह सम्पूर्ण चौदह राजलोक जाने देख व अलोक में एक आकाश प्रदेश मात्र क्षेत्र की बात जाने देखे तो भी पड़े नहीं एवं दो प्रदेश तथा तीन प्रदेश यावत् लोक प्रमाण असंख्यात खण्ड जानने की शक्ति होवे उसे अप्रति पाति अवधि ज्ञान कहते हैं अलोक में रूपी पदार्थ नहीं यदि यहां रूपी पदार्थ होवे तो देख इतनी जानने की शक्ति होती है यह ज्ञान तीर्थकर प्रमुख को बचपन से ही होता है केवल ज्ञान होने बाद यह उपयोगा नहीं होता है एवं ६ भेद अवधि ज्ञान के हुवे ।
समुच्चय अवधि ज्ञान के चार भेद होते हैं:-१ द्रव्य से अवधि ज्ञानी जघन्य अनन्त रूपी पदार्थ जाने देखे उत्कृष्ट सर्व रूपी द्रव्य जाने देखे २ क्षेत्र से अवधि ज्ञानी जघन्य अङ्गुल के असंख्यातवें भाग क्षत्र जाने देखे उत्कृष्ट लोक प्रमाण असंख्यात खण्ड अलोक में देखे ३ काल से अवधि ज्ञानी जघन्य आवलिका के असंख्यातवें भाग की बात जाने देखे उत्कृष्ट असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी, अतीत (गत ) अनागत ( भविष्य ) काल की बात जाने देखे ४ भाव से जघन्य अनन्त भाव को जाने उत्कृष्ट सर्व भाव के अनन्तवें भाग को जाने देखे (वर्णादिक पर्याय को)।
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