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पाँच ज्ञान का विवेचन |
( २६५ )
अनन्त जीव दुख से मुक्त होवेंगे। इसी प्रकार सूत्र की विराधना करने से तीनों काल में संसार के अन्दर भ्रमण करने का ( ऊपर समान ) जानना । श्रुत ज्ञान ( द्वादशांगरूप ) सदा काल लाक श्री है ।
श्रुत ज्ञान - समुच्चय चार प्रकार का है- द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से ।
द्रव्य से श्रुत ज्ञानी उपयोग द्वारा सर्व द्रव्य जाने व देखे | ( श्रद्धा द्वारा व स्वरूप चितवन करने से ) क्षेत्र से - श्रुत ज्ञानी उपयोग द्वारा सर्व क्षेत्र की बात जाने व देखे ( पूर्व चत् )
काल से - श्रत ज्ञानी उपयोग द्वारा सर्व काल की बात जाने व देखे ( पूर्ववत् )
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भाव से श्रुत ज्ञानी उपयोग द्वारा सर्व भाव जाने व देखे ।
अवधि ज्ञान का वर्णन |
१ अवधि ज्ञान के मुख्य दो भेद - १भव प्रत्ययिक २ क्षायोपशमिक १ सव प्रत्ययिक के दो भेदः -- १ नेरिये व २ देव ( चार प्रकार के) को जो होता है वो भव सम्बन्धी । यह ज्ञान उत्पन्न होने के समय से लगा कर भव के अन्त समय तक रहता है २ क्षायोपशमिक के दो भेद - १ संज्ञी मनुष्य को व २ संज्ञी तिर्येच पंचेन्द्रिय को होता है । क्षयोपशम भाव से जो उत्पन्न होता है व क्षमा
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