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थोकडा संग्रह।
७ सादिक श्रुत ८अनादिक श्रत ६ सपर्यवसित श्रुत १० अपर्यवसित श्रुतः-इन चार प्रकार के श्रुत का भावार्थ साथ २ दिया जाता है। बारह अंग व्यवच्छेद होने आश्री अन्त सहित और व्यवच्छेद न होने आश्री श्रादिक अन्त रहित । समुच्चय से चार प्रकार के होते हैं। द्रव्य से एक पुरुष ने पढना शुरू किया उसे सादिक सप. यवसित कहते हैं और अनेक पुरुष परंपरा पाश्री अनादिक अपर्यवसित कहते हैं क्षेत्र से ५ भरत ५ एरावत, दश क्षेत्र श्राश्री सादिक सपर्यवसित ५ महा विदेह पाश्री अनादिक अपर्यवसित, काल से उत्सर्पिणी अवसर्पिणी आश्री सादिक सपर्यवसित नोउत्सर्पिणी नोअवसर्पिणी पाश्री अनादिक अपर्यवसित, भाव से तीर्थंकरों ने भाव प्रकाशित किया इस
आश्री सादिक सपर्यवसित । क्षयोपशम भाव आश्री अनादिक अपयवसित अथवा भव्य का श्रुत आदिक अन्त सहित अभव्य का श्रृत आदि अन्त रहित, इस पर दृष्टान्तसर्व आकाश के अनन्त प्रदेश हैं व एक एक. आकाश प्रदेश में अनन्त पर्याय हैं । उन सर्व पर्याय से अनन्त गुणे अधिक एक अगुरुलघु पर्याय अक्षर होता है जो क्षरे नहीं, व अप्रतिहत, प्रधान, ज्ञान, दर्शन जानना सो अक्षर, अक्षर केवल सम्पूर्ण ज्ञान जानना-इस में से सर्व जीव को सर्व प्रदेश के अनन्तवें भाग जान पना सदाकाल रहता है शिष्य पूछने लगा हे स्वामिन् ! यदि इतना जानपना
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