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तैतीस बोल ।
(२४७)
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पंडित की मृत्यु होवे इसकी आराधना करने का संग्रह करना ।
तेंतीश प्रकार की अशातना:-१ शिष्य गुरु आदि के आगे अचिनय से चले तो अशातना २ शिष्य गुरु आदि के बराबर चले तो अशातना ३ शिष्य गुरु
आदि के पीछे अविनय से चले तो अशातना (४) (५) (६) इस प्रकार गुरु आदि के आगे, बराबर पीछे अवि नय से खडा रहे तो अशातना (७) (८) (8) इस तरह गुरु आदि के आगे, बराबर, पीछे अविनय से बैठे तो अशातना (१०) शिष्य गुरु आदि के साथ बाहिर भूमि जावे और उनके पहले ही शुचि निवृत होकर आगे आवे तो अशा । (११)गुरु आदि के साथ विहार भूमि जाकर व वहां से आकर इरिया पथिका पहले ही प्रतिक्रमे तो अशा० । १२ किसी पुरुष के साथ कि जिसके साथ गुरु आदि को बोलना योग्य, स्वयं बोले व गुरु आदि बादमें बोले तो-अशा० ११३ रात्रि को गुरु आदि पूछे कि 'अहो आर्य ! कोन निद्रा में है और कोन जागृत है' एसा सुनकर भी इसका उत्तर नहीं देवे तो अशा० । १४ अशनादि वहेर कर लावे तब प्रथम अन्य शिष्यादि के आगे कहे और गुरु
आदि को बादमें कहे तो अशा० । १५ अशनादि लाकर प्रथम अन्य शिष्यादि को बतावे और बादमें गुरु को बतावे तो अशा० । १६ अशनादि लाकर प्रथम अन्य शिष्यादि को निमन्त्रण करे और बाद में गुरु के
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