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तेतीस बोल।
(२४६)
गुरु आदि व्याख्यान देते हों उस समय शिष्य ठीक २ नहीं समझने पर खुश न रहे तो अशातना (२८) बडे व्याख्यान देते हों उस समय सभा में गड़बड़ पड़े ऐसी उच्च आवाज से कहे कि समय हो गया है, आहारादि लेने को जाना है आदि तो अशातना (२६) गुरु आदि के व्याख्यान देते समय श्रोताओं के मन को अप्रसन्नता उत्पन्न करे तो अशातना (३०) गुरु आदि का व्याख्यान बन्ध न हुवा तो भी खयं व्याख्यान शुरू करे तो अशातना (३१ ) गुरु आदि की शय्या पांव से सरकावे तथा हाथ से ऊंची नीची करे तो अशातना (३२) गुरु आदि की शय्या, पथारी पर खडा रहे, बैठे, सोवे तो अशातना (३३) बडों से ऊंच आसन पर तथा बराबर बैठे, खडा रहे, सोवे आदि तो अशातना ।
ॐ इति तेंतीश बोल सम्पूर्ण
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