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ANANAVARAN
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थोकडा संग्रह। गुरु आदि के समीप सूत्रार्थ रूप लक्ष्मी प्राप्त करने को हमेशा रहना।
ग्यारह प्रकार की श्रावक प्रतिमा-१ एक मासकी--इप्स में शुद्ध सत्य धर्म की रुचि होवे परन्तु नाना व्रत उपवासादि अवश्य करने के लिये श्रावक को नियम न होवे । उसे दर्शन श्रावक प्रतिमा कहते हैं २ दूसरी प्रतिमा दो माह की--इसमें सत्य धर्म की रुचि के साथ २ नाना शील व्रत-गुणवत प्रत्याख्यान पौषधोपवासादि करे परन्तु सामायिक दिशा वकाशिक व्रत करने का नियम न होवे वो उपासक प्रतिमा ३ तीसरी प्रतिमा तीन माह की-इसमें ऊपर कहा उसके उपरान्त सामायिकादि करे, परन्तु अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या,पूर्णमासी श्रादि पर्व में प्रौषधोपवास करने का नियम न होवे ४ चोथी प्रतिमा चार माह की-इसमें ऊपर कहा उसके उपरान्त प्रति पूर्ण पोषधोपवास अष्टम्यादि सर्व पर्व में करे । ५ पांचवी प्रतिमा पांच माह की--इसमें पूर्वोक्त सर्व आचरे, विशेष एक रात्रि में कायोत्सर्ग करे और पांच बोल आचरे; १ स्नान न करे २ रात्रि भोजन न करें ३ लांग न लगावे ४ दिन में ब्रह्मचर्य पाले ५ रात्रि में परिमाण करे । ६ छठी प्रतिमा छ: माह की-इसमें पूर्वोक्त उपरान्त सर्व समय ब्रह्मचर्य पाले ७ सातवी प्रतिमा जघन्य एक दिन उत्कृष्ट सात माह की इसमें सचित्त आहार नहीं
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