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तेतीस बोल ।
(२३१)
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श्राते हो तो डर कर एक पांव भी पीछे धरे नहीं परन्तु सुवांला (सीधा) भद्र जीव सामने आता हो तो दया के कारण यत्नां के निमित्त पांव पीछे फिरे।
२२ प्रतिमा धारी साधु धूप से छांया में नहीं जावे और छांया से धूप में नहीं जावे, शीत और ताप सम परि. णाम पूर्वक सहन करे।
दुसरी प्रतिमा एक मास की । इस में दो दाति आहार की और दो दाति जलकी लेवे।
तीसरी प्रतिमा एक माह की। इस में तीन दाति प्रा. हार की और तीन दाति जलकी लेना कल्पे।।
चौथी प्रतिमा एक माह की। इस में चार दाति प्रा. हार की और चार दाति जल की लेना कलरे।
पांचवी प्रतिमा एक माह की । इस में पांच दाति आहार की और पांच दाति जल की लेना कल्ये।
छट्ठी प्रतिमा एक माह की । इस में ६ दाति आहार की और ६ दाति जल की लेना कल्ले ।
सातवीं प्रतिमा एक माह की। इस में सात दाति प्रा. हार की और सात दांति जल की लना कल्प।
- आठवीं प्रतिमा सात अहोरात्रि की । इस में जल विना एकान्तर उपवास करे । ग्राम, नगर, राजधानी आदि के बाहर स्थानक करे, तीन आसन से बैठे, चित्ता सोदे,करवट से सोवे, पलांठी मार कर सोवे। परन्तु किसी भी परिषह से डरे नहीं।
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