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तेत्तीस बोल ।
( २४१ )
३ अति प्रज्वलित कर, वाड़ादिक में प्राणी रोक कर वे से आकुल व्याकुल कर मारे तो महा मोहनीय |
४ उत्तमांग- मस्तक को खङ्ग आदि से भेदे-छेदे काड़े - काटे तो महा मोहनीय |
५ चमड़े प्रमुख में मस्तकादि शरीर को तान कर बांधे और वारंवार अशुभ परिणाम से कदर्थना करे तो महा मोहनीय |
६ विश्वासकारी वेष बनाकर मार्ग प्रमुख के अन्दर जीव को मारे, व लोक में आनन्द माने तो महा मोहनीय । ७ कपट पूर्वक अपने आचार को गोयवे तथा अपनी माया द्वारा अन्य को पाश (जाल) में फंसाने तथा शुद्ध सूत्रार्थ गोयवे तो महा मोहनीय |
८ खुद ने अनेक चौर कर्म बाल घात (अन्याय) प्रमुख कर्म किये हुये हों तो उनके दोष अन्य निर्दोषी पुरुष पर डाले तथा यशस्वी का यश घटावे व श्रद्धता ( झूठा ) अल ( कलङ्क ) लगावे तो महा मोहनीय |
६ दूसरों को खुश करने के लिये, द्रव्य भाव से झगड़ा ( क्लेश ) बड़ाने के लिये, जानता हुवा भी सभा में सत्य मृषा (मिश्र) भाषा बोले तो महा मोहनीय |
१० राजा का भन्डारी प्रमुख, राजा, प्रधान, तथा समर्थ किसी पुरुष की लक्ष्मी प्रमुख लेना चाहे तथा उस पुरुष की स्त्री का सतीत्व नष्ट करना चाहे तथा उसके रागी
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