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थोकडा संग्रह।
नव प्रकार की ब्रह्मचर्य गुप्तिः (१)स्त्री पशुपंडक रहित श्रालय (स्थानक ) में रहना ( इस पर ) चूहे बिल्ली का दृष्टान्त(२)मन को आनन्द देने वाली तथा काम-राग की वृद्धि करने वाली स्त्री के साथ कथा-वार्ता नहीं करना, नींबू के रस का दृष्टान्त (३) स्त्री के आसन पर बैठना नहीं तथा स्त्री के साथ सहवास करना नहीं । घृत के घट को अग्नि का दृष्टांत (४) स्त्री का अङ्ग अवयव, उस की प्राकृति, उसकी बोल चाल व उसका निरक्षण आदि का राग दृष्टि से देखना नहीं-(सूर्य को दुखती आंखो से देखने का दृष्टान्त (५) स्त्री सम्बन्धी कूजित, सदन, गीत, हास्य, श्राक्रन्द आदि सुनाई देवे एसी दीवार के समीप निवास नहीं करना, मयूर को गजारव का दृष्टांत (६) पूर्वगत स्त्री सम्बन्धी क्रीड़ा,हास्य, रति, दर्प, स्नान, साथ में भोजन करना आदि स्मरण नहीं करना । सर्प के जहर (विष) का दृष्टान्त (७) स्वादिष्ट तथा पौष्टिक आहार नित्यप्रति करना नहीं त्रिदोषी को घृत का दृष्टान्त (८) मर्यादित काल में धर्म यात्रा के निमित्त चाहिये उससे अधिक आहार करना नहीं । कागज की कोथली में रुपों का दृष्टान्त(६)शरीर सुन्दर व विभूषित करने के लिये श्रङ्गार व शोभा करना नहीं। रंक के हाथ रत्न का दृष्टान्त ।
दश प्रकार का श्रमण-( यति ) धर्म-१ क्षमा (सहन करना) २ मुक्ति (निर्लोभिता रखना) ३ प्राजेक' (निर्मल स्वच्छ हृदय रखना ) ४ मादेव (कोमल-विनय
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