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श्रीगुणस्थान द्वार।
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और आहारिक के २ घटाना ) नववें गुण० १६ हेतु (२२ में से-हास्य, गति, अरति, भय शोक,दुर्गछा ये ६ घटाना) दश गुण० १० हेतु 8 योग और १ संज्वलन का लोभ एवं १० हेतु। इग्यारहवें,बारहवें गुण०६ हेतु (ह योग के) तेरहवें गुण०७ हेतु (सात योग के)चौदहवें गुण० हेतु नहीं। __२ दण्डक द्वार:-पहेले गुण० २४ दण्डक, दूसरे गुण० १६ दण्डक, ( ५ स्थावर के छोड़कर ) तीसरे, चोथे, गुण० १६ दण्डक (१६ में से ३ विकलेन्द्रिय के घटाना) पांचवे गुण० २ दण्डक-संज्ञी मनुष्य और संज्ञो तिर्यच, छठे से चौदहवें गुण० तक १ मनुष्य का दण्डक ।
३जीवा योनिद्वार:-पहेले गुण०८४ लाख जीवा योनि, दूसरे गुण० ३२ लाख, ( एकेन्द्रिय की ५२ लाख छोड़कर ) तीसरे चौथे गुण० २६ लाख जीवा योनि द्वार पांचवें गुण०१८ लाख जीवा योनि, छठे से चौदहवें गुण १४ लाख जीवा योनि । ____४ अन्तर द्वार:-पहेले गुण जघन्य अन्तर्मुहूर्त उ० ६६ सागरोपम जाजेरी अथवा १३२ सागर जाजेरी, ये ६६ सागर चौथे गुण रहे, अन्तर्मुहूर्त तीसरे गुण रह कर पुनः चौथे गुण० ६६ सागर रह कर मिथ्यात्व गुण आवे दूसरे गुण से इग्यारहवें गुणतक जघन्य अन्तर्मुहूर्त अथवा पन्य के असंख्यातवें भाग ( इतने काल के बिना उपशम
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