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श्री गुणस्थान द्वार |
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करे वो चायक समकित और ११ प्रकृति को ढांके व उपशमावे वो उपशम समकित और ११ प्रकृतेि को कुछ उपशमाचे व कुछ क्षय करे वो क्षयोपशम समकित | पांचवें गुणस्थान पर आया हुवा जीवादिक पदार्थ द्रव्य से, क्षेत्र से. काल से, भाव से नोकारसी यदि छमासी तप जाने, सरूपे व शक्ति प्रमाणे फरमे । एक पच्चखाग से लगा कर ११ व्रत, श्रावक की ११ पंडिमा आदरे यावत् संलेखणा ( संलेषणा ) तक अनशन कर अराधे । तिजारे (उससमय ) गौतम स्वामी हाथ जोड़ मान मोड़ श्री भगवन्त को पूछने लगे हे स्वामी नाथ ! इस जीव को किस गुण की प्राप्ति होवे तत्र भगवन्त ने उत्तर दिया कि जघन्य तीसरे भव में व उ०१५ भव में मोज्ञ जावे । ज० पहेले देव लोक में उ० १२ वें देव लोक में उपजे । साधु के व्रत की अपेक्षा से इसे देशवर्ती कहते है परन्तु परिणाम से व्रत की क्रिया उतर गई है अल्प इच्छा, अल्प आरम्भ, अल्प परिग्रह, सुशील, सुव्रती, धर्मिष्ट, धर्म वृत्ति, वल्प उग्र बिहारी, महा संवेग बिहारी, उदासीन, वैराग्यवन्त, एकान्त आर्य, सम्यग मार्गी, सुसाधु सुपात्र, उत्तम क्रियावादी, आस्तिक, आराधक, जैन मार्ग प्रभावक,
रिहन्त का शिष्य आदि स इसे वर्णन किया है । यह गीतार्थ का जानकर होता है । शाख सिद्धांन्त की । श्रम्बकत्व एक भव में प्रत्येक हजार वार आवे ।
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