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थोकडा संग्रह।
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मतंगाय 'भिंगा, 'तुड़ीयंगा 'दीव 'जोई 'चितगा, "चितरसा ‘मणवेगा, 'गिहगारा 'अनियगणाउ ।
अर्थ-१ मतङ्ग वृक्ष 'जिससे मधुर फल प्राप्त होते हैं २ 'भिङ्गा वृक्ष ' से रत्न जड़ित सुवर्ण भाजन (पात्र) मिलते हैं ३ ' तुड़ियङ्गा वृक्ष ' से ४६ जाति के वादिंत्र ( वाजिंत्र ) के मनोहर नाद सुनाई देते हैं ४ 'दीव वृत्त' से रत्न जडित दीपक समान प्रकाश होता है ५ जोति (जोई) वृक्ष रात्रि में सूर्य समान प्रकाश करते हैं ६, चितङ्गा, वृक्ष से सुगंधी फूलों के भूषण प्राप्त होते हैं७ 'चितरसा' वृक्ष से ( १८ प्रकार के ) मनोज्ञ भोजन मिलते हैं ८ 'मनोवेगा' से सुवर्ण रत्न के आभूषण मिलते हैं । 'गिहंगारा ' वृक्ष से ४२ मंजल के महल मिल जाते हैं १० 'अनिय गणाउ' वृक्ष से नाक के श्वास से उड़ जावे ऐसे महीन ( पतले व उत्तम वस्त्र प्राप्त होते हैं । प्रथम
आरे के स्त्री पुरुष का आयुष्य जब छ महिन का शेष रहता है उस समय युगलिये परभव का आयुष्य बांधते हैं और तब युगलनी एक पुत्र पुत्री के जोड़े को प्रमूतती ( जन्मदेती) है। उन बच्चे बच्ची का ४६ दिन तक पालन करने बाद वे होशियार हो दम्पती बन सुखोपभोगानुभव करते हुवे विचरते हैं और युगल युगलनी का क्षण मात्र भी वियोग नहीं होता है उनके माता पिता एक को छींक और दूसरे को उबासी आते ही मर कर देव गति में जाते
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