________________
( १६२)
थोकडा संग्रह
चलायमान हुवा तब शकेन्द्र ने उपयोग द्वारा मालूम किया कि श्री महावीर स्वामी भिक्षुक कुल के अंदर उत्पन्न हुवे हैं । ऐसा जान कर शकेन्द्र ने हरिण गमेषी देव को बुला कर कहा कि तुम जाकर क्षत्रीय कुंड के अन्दर, सिद्धार्थ राजा के यहां, त्रिशला देवी रानी की कुक्षि (कोख ) में श्री महावीर स्वामी का गर्भ प्रवेश करो और जो गर्भ त्रिशला देवी रानी की कोख में है उसे लेजाकर देवानन्दा ब्राह्मणी की कोख में रक्खो । इस पर हरिण गमेषी आज्ञानुसार उसी समय माहण कुंड नगरी में आया व आकर भगवंत को नमस्कार कर के बोला " हे स्वामी आपको भली भांति विदित है कि मैं श्रापका गर्भ हरण करने आया हूं" इस समय देवानन्दा को अवस्वापिनि निद्रा में डाल कर गर्भ हरण किया व गर्भ को लेजाकर क्षत्रीय कुंड नगर के अन्दर सिद्धार्थ राजा के यहां, त्रिशला देवी रानी की कोख में रक्खा व त्रिशला देवी रानी की कोख में जो पुत्री थी उसे लेजाकर देवानन्दा ब्राह्मणी की कोख में रख्खी । पश्चात् सवा नक मास पूर्ण होने पर भगवंत का जन्म हुवा । दिन प्रति दिन बढ़ने लगे व अनुक्रम से यौवनावस्था को प्राप्त हुवे तब यशोदा नामक राजकुमारी के साथ आपका पाणी ग्रहण हुवा । सांसारिक सुख भोगते हुवे आप के एक पुत्री उत्पन्न हुई जिसका नाम प्रियदर्शना रख्खा गया । आप
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org