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दश द्वार के जीव स्थानक ।
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शेष. २६. कुछ भव्य जीव को २८ प्रकृति का उदय होता है। जिसमें मिथ्यात्व का बल विशेष । दो की नीमा. व तीन की ( वाद ) भजना १ समकित मोहनीय २ मिश्र मोहनीय इन दो की नीमा. १ प्रक्रिया वादी २ अज्ञान वादी ३.विनय वादी इन तीन की भजना. इस तरह चोवीश संपराय क्रिया लगे।
(२) दूसरे जीव स्थानक में मोहनीय कर्म की २८ प्रकृतियों में से बीस का उदय होता है,उसमें सास्वादन का बल विशेष होता है उसमें दो की नीमा १ मिथ्यात्व मोहनीय ,२.मिश्र मोहनीय। दो का वाद होता है १ अक्रियावादी, २ अज्ञान वादी जिससे चोवीश संपराय क्रिया लगती है।
(३) मिश्र दृष्टि जीव स्थानक में मोहनीय कर्म की २८ प्रकृति में से २८ का उदय इनमें मिश्र का बल विशेष है उसमें दो की नीमा और दो का वाद.१ समकित मोहनीय २ मिथ्यात्व मोहनीय इन दो की नीमा, १ अज्ञान वादी २ विनय वादी इन दो का वाद इस तरह २४.संप. राय क्रिया लगती है।
(४) अवर्ती समदृष्टि जीव स्थानक में-मोहनीय कर्म की २८ प्रकृति में से सात का क्षयोपशम २१ का उदय । अनन्तानु बंधी क्रोध मान माया लोभ ५.समकित मोहनीय ६ मिथ्यात्व मोहनीय इन सात का सोपशम २१
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