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(१६६)
थोकडा संग्रह। पर श्रीखंड का दृष्टान्त जैसे श्रीखंड कुछ खट्टा और कुछ मिठा होता है वैसे ही मिट्ठ समान समकित और खट्टे समान मिथ्यात्व जो जिन मार्ग को अच्छा समझे तथा अन्य मार्ग को भी अच्छे समझे जैसे किसी नगर के बाहर साधु महा पुरुष पधारे हुवे हैं। व श्रावक लोग जिन्हे वंदना नमस्कार करने के लिये जा रहे हो उस समय मिश्र दृष्टि मित्र मार्ग में मिला उसने पूछा " मित्र ! तुम कहां जा रहे हो । इस पर श्रावक ने जवाब दिया कि मैं साधु महापुरुष को वंदना करने को जा रहा हूँ मिश्र दृष्टि वाले ने पूछा कि वंदना करने से क्या लाभ होता है। श्रावक ने कहा कि महा लाभ होता है इस पर मित्र ने कहा कि मैं भी बंदना करने को आता हूँ ऐसा कह कर उस ने चलने के लिये पैर उठाये इतने में दूसरा मिथ्यात्वी मित्र मिला । इस ने इन्हें देख कर पूछा कि तुम कहां जा रहे हो । तब मिश्र गुण स्थान वाला बोला कि हम साधु महा पुरुष का वदना करने के लिये जा रहे हैं यह सुन कर मिथ्यात्वी बोला कि इन की वंदना करने से क्या होता है येतो बड़े मेले कुचेले रहते हैं इत्यादि कह कर उसे (मिश्र दृष्टि वाले को ) पुनः जाते हुवे को लोटाया। श्रावक साधु मुनिराज को वंदना कर के पूछने लगा कि महाराज मेरे मित्र ने वंदना करने के लिये पैर उठाया इससे उसे किस गुण की प्राप्ति हुई । तब मुनि ने उत्तर दिया, कि जो काले
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