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छः आरों का वर्णन ।
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तीश वर्ष तक संसार में रहे। माता पिता के स्वर्गवासी होने पर आपने अकेले ही दीक्षा ग्रहण की, संयम लेकर १२ वर्ष ६ माह १५ दिन तक कठिन तप, जप, ध्यान धर कर भगवंत को वैशाख माह में सुदी दशमी को सुवर्त नामक दिन को विजय मुहूर्त में, उत्तरा फान्गुनी नक्षत्र में, शुभ चन्द्रमा के मुहूर्त में, वियंता नामक पिछली पहर में @भिया नगर के बाहर, ऋजुबालिका नदी के उत्तर दिशा के तट पर सामाधिक गाथापति कृष्णी के क्षेत्र में, वैयावृत्यी यक्षालय के ईशान दिशा की ओर, शाल वृक्ष के समीप, उंकड़ा तथा गोधुम आसन पर बैठे हुवे, सूर्य की आतापना लेते हुवे, चउविहार छ? भक्त करके इस प्रकार धर्म ध्यान में प्रवर्तते हुवे तथा चार प्रकार का शुक्ल ध्यान ध्याते हुवे, आठ कमरों में से १ ज्ञानावरणीय २ दर्शना वरणीय ३ मोहनीय ४ अन्तराय इन चार घन घाती कम-जो अरि अर्थात् शत्रु समान, वैरी समान, पिशाच ( झोटिंग ) समान है-का नाश करके ज्ञान रूपी प्रकाश का करने वाला ऐसा केवल ज्ञान केवल दर्शन आपको उत्पन्न हुवा २६ वर्ष ॥ माह तक आप केवल ज्ञान पने विचरे । एवं सर्व ७२ वर्ष का आयुष्य भोग कर चोथे आरे के जब तीन वर्ष ८॥ माह शेष रहे तब कार्तिक विदि अमावस को पावापुरी के अन्दर अकेले ( बिना साधनों के परिवार से) मोक्ष पधारे । भगवंत के पांच
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