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छः अारों का वर्णन ।
( १६६)
शेष सब नष्ट होजावेंगे। वे चार जीव समाधि परिणाम से काल करके प्रथम देवलोक में जावेंगे पश्चात् चार बोल और विच्छेद होवेंगे १ प्रथम प्रहर में जैन धर्म २ दूसरे प्रहर में मिथ्यात्रियों के धर्म ३ तीसरे प्रहर में राजनीति और चौथे प्रहर में बादर अग्नि विच्छेद हो जावेगा।
पांचवे आरे के अन्त तक जीव चार गति में जाते हैं कवल एक पांचवी मोक्ष गति में नहीं जात हैं। ॥ इति पांचवा पारा॥
हा पारा उक्त प्रकार से पञ्चम आरे की समाप्ति होते ही २१००० वर्ष के 'दुःखमा दुखमी' नामक छठे आरे का
आरंभ होगा। तब भरतक्षेत्राधिष्टित देव पञ्चम आरे के विनाश पाते हुवे पशु मनुष्यों में से बीज रूप कछ मनुष्यों को उठाकर वैताढ्य गिरि के दक्षिण और उत्तर में जो गङ्गा और सिन्धु नदी है उनके आठों किनारों में से एक एक तट में नव२ बिल हैं एवं सर्व १२ बिल हैं और एक एक बिल में तीन तीन मंजिल है उनमें से उन पशु व मनुष्यों को रक्खेंगे । छठे बारे में पूर्वापेक्षा वर्ण गंध, रस, स्पर्श आदि पुद्गलों की पर्यायों की उत्तमता में अनन्त गुणी हानि हो जावेगी। क्रम से घटते घटते इस बारे में
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