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(१५८ )
थोकड। संग्रह।
इस बारे में दश प्रकार के कल्पवृक्ष दश प्रकार का मनोवांछित सुख देते हैं (पहेला आरा समान) मृत्यु के छै महिने जब शेष रहते हैं तब युगलनी एक पुत्र पुत्री का प्रसव करती है बच्चे बच्ची का ६४ दिन पालन किये बाद वे (पुत्र पुत्री) दम्पती बन सुखोपभोग करते हुवे विचरते हैं और उनके माता पिता एक को छींक और दूसरे को उबासी आते ही रकर देव गति में जाते हैं क्षेत्राधिष्टित देव इन के मृतक शरीर को क्षीर सागर में डाल कर मृतक क्रिया करते हैं । गति एक देव की। इस आरे में ईर्ष्या नहीं, वैर नहीं, जरा नहीं, रोग नहीं, कुरुप नहीं, परिपूर्ण अङ्ग उपाङ्ग पाकर सुख भोगते हैं । ये सब पूर्ण भव के दान पुन्यादि सत्कर्म का फल जानना। ॥इति दूसरा पारा सम्पूर्ण ॥
ॐ तीसरा पारा (३)यों दूसरा पारा समाप्त होते ही दो करोड़ा करोड़ सागरोपम का 'सुखमा दुखमा' (सुख बहुत दुःख थोड़ा) नामक तीसरा पारा शुरु होता है तब पहिले से वर्ण गंध रस स्पर्श की उत्तमता में हीनता हो जाती है । कम से घटते घटते मनुष्यों का देहमान एक गाउ (कोश) का व आयुष्य एक पल्यापम का रह जाता है उतरते आरे ५०० धनुष्य का देहमान व करोड़ पूर्व का आयुष्य रह जाता है।
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