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गता गति द्वार ।
(१४३)
पांचवे स्वार्थ सिद्ध विमान में ज० एक समय उ० संख्यातवें भाग ।
पांच एकेन्द्रिय में अंन्तर नहीं पड़े। तीन विकलेन्द्रिय और तिर्यच समूर्छिम में अन्तर पड़े तो जघन्य एक समय उत्कृष्ट अंतर मुहूत का ।
तिथंच गर्भज व मनुष्य गर्भज में जघन्य एक समय उत्कृष्ट बारह मुहूर्त का । मनुष्य संमूर्छिम में जघन्य एक समय उत्कृष्ट चोवीश मुहूते का।
सिद्ध में अंतर पड़े तो जघन्य एक समय उत्कृष्ट छ माह का । इसी प्रकार सिद्ध को छोड़कर शेष में चवने का अंतर उक्त उत्पन्न होने के अंतर समान जानना ।
* तीसरा सअंतर निरंतर द्वार स अंतर अर्थात अंतर सहित, निरंतर अर्थात अंतर रहित उत्पन्न होवे।
पांच एकेन्द्रिय के पांच दण्डक छोड़कर शेष उन्नीस दण्डक में तथा सिद्ध में सअंतर तथा निरंतर उत्पन्न होवे
पांच एकेन्द्रिय के पांच दण्डक में निरंतर उत्पन्न होवे ऐसे ही उद्वर्तन (चवने का ) जानना (सिद्ध को छोड़कर) ४ एक समय में किस बोल में कितने उत्पन्न
__ होवे व चवे उसका द्वार । सात नरक, ७. दश भवनपति, १७, वाण व्यतर, १८. ज्योतिषी, १६, पहेले देवलोक से आठो देवलोक
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