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(१४४)
थोकडा संग्रह।
तक, २७. तीन विकलेन्द्रिय, ३०. तिर्यच संमूर्छिम, ३१. तियच गर्भज, ३२. मनुष्य संमृर्छिम, ३३ इन तेंतीश बोल में एक समय में जघन्य एक, दो, तीन उत्कृष्ट उपजे तो असंख्याता उपजे । नवां, दशवां,इग्यारवां, व चारहवां देवलोक ये चार देवलोक ४, नव ग्रीयवेक, १३, पांच अनुत्तर विमान १८ मनुष्य गर्भज १६ इन उन्नीश बोल में जघन्य एक समय में एक, दो, तीन उत्कृष्ट संख्याता उपजे, पृथ्वी, अप, अग्नि, वायु, इन चार एकेन्द्रिय में समय समय असंख्याता उपजे वनस्पति में समय समय असंख्याता ( यथास्थाने ) अनंता उपजे।।
सिद्ध में एक समय में जघन्य एक, दो तीन उत्कृष्ट एक सो पाठ उपजे ऐस ही उद्वर्तन ( चवन ) सिद्ध को छोड़ कर शेष सर्व का जानना ( उत्पन्न होने के समान )।
पांचा कत्तो ( कहां से आवे ), छट्टा उद्वर्तन (चव कर जावे) ये दोनों द्वार ।
५६. में से जिस जिस बोल के आकर उत्पन्न होने वो आगति और चव कर ५६३ में से जिस जिस बोल में जावे वो गति ( उद्वर्तन)
(१) पहेली नरक में २५ बोल की आगति १५ कर्म भूमि, ५ संज्ञी तिर्यच, ५ असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय ये २५/
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