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गता गति द्वार।
(१५१ )
ह लोकांतिक, नव ग्रीयवेक, व पहेली दूसरी नरक एवं ३२। गति १४ बोल की-सात नरक का अपर्याप्ता और पर्याप्ता ।
(४) बलदेव की प्रागति ८३ बोल की-चक्रवर्ति के ८२ बोल कहे वो और एक दूसरी नरक एवं ८३॥ गति ७० बोल की वैमानिक के ३५ भद का अपर्याप्ता और पर्याप्ता एवं ७०।
(५) केवली की प्रागति १०८ बोल की जाति के देव में से--१५ परमाधर्मी और तीन किल्विषी एवं १८ घटाना--शेष ८१ बोल, और १५ कर्म भूमि, ५ संज्ञी तिर्थच, पृथ्वी, अप, वनस्पति, पहेली, दूसरी, तीसरी व चोथी नरक एवं ( ८१+१५+५+१+११X3 ) १०८ बोल का पर्याप्ता, गति मोक्ष की ।
(६) साधु की प्रागति २७५ बोल की-ऊरर के १७६ बोल में से तेजम वायु का पाठ बोल छ ड शेष १७१ बोल, ६६ जाति के देव, व पहेली नरक से पांचवी करक तक ( १७१+86+५) एवं २७५ बोल । गति ७० बोल की बलदेव समान ।
(७) श्रावक की प्रागति २७६ बोल की-साधु के २७५ बोल व छट्टी नरक का पर्याप्ता एवं २७६ बोल ।
गति ४२ बोल की-१२ देवलोक, ह लोकांतिक इन २१ का अपर्याप्ता और पर्याप्ता एवं ४२ ।
(८) सम्यक्त्व दृष्टि की आगति ३६३ बोल की 88
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