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® अरिहन्त*
अरिहन्त की वाणी के ३५ गुण
तीर्थङ्कर भगवान कृतकृत्य होने पर भी, तीर्थङ्कर नाम कर्म के उदय से नेरीह-निष्काम भाव से, जगत् के जीवों का कल्याण करने के लिए धर्मोपश देते हैं। उनकी वाणी में जो-जो गुण होते हैं, वे इस प्रकार हैं:
[१] तीर्थङ्कर भगवान् संस्कारयुक्त वचनों का प्रयोग करते हैं।
[२] भगवान ऐसे उच्च स्वर (बुलन्द आवाज) से बोलते हैं कि एकएक योजन तक चारों तरफ बैठी हुई परिषद् (श्रोतागण ) भलीभाँति श्रवण र लेती है।
[३] 'रे' 'तू' इत्यादि तुच्छता से रहित सादे और मानपूर्ण वचन लते हैं।
[४] मेघगर्जना के समान भगवान की वाणी सूत्र से और अर्थ से म्भीर होती है। उच्चारण और तत्व दोनों दृष्टियों से उनकी वाणी का हस्य बहुत गहन होता है।
[१] जैसे गुफा में और शिखरबन्द प्रासाद में बोलने से प्रतिध्वनि उठती है, उसी प्रकार भगवान् की वाणी की भी प्रतिध्वनि उठती है।
[६] भगवान् के वचन श्रोताओं को घृत और शहद के समान स्निग्ध पौर मधुर लगते हैं।
[७] भगवान् के वचन ६ राग और ३० रागिनी रूप परिणत होने से प्रोताओं को उसी प्रकार मुग्ध और तल्लीन बना देते हैं, जैसे पुंगी का शब्द सुन कर नाग और वीणा का शब्द सुन कर मृग मुग्ध और तल्लीन हो जाता है।
[८] भगवान् के वचन सूत्र रूप होते हैं। उनमें शब्द थोड़े और अर्थ बहुत होता है।
[१] भगवान् के वचनों में परस्पर विरोध नहीं होता। जैसे 'अहिंसा