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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
(४) वीरनन्दिकृत चन्द्रप्रभचरित (९७०-६७५ ई०)--
चन्द्रप्रभचरित के रचयिता वीरनन्दि हैं । चन्द्रप्रभ की प्रशस्ति के अन्त में वीरनन्दि को प्राचार्य अभय नन्दि का शिष्य बताया गया है ।' वादिराज (१०२५ ई०) ने पार्श्वनाथचरित में चन्द्रप्रभचरित के नामोल्लेख सहित वीरनन्दि की प्रशंसा की है । अतः वीर नन्दि का समय १०२५ ई० पू० निश्चित है। गोम्मटसार की रचना वाङ्गवंशीय राजारामबल के प्रधानमन्त्री चामुण्डराय से प्रेरित होने के कारण, तथा चामुण्डराय द्वारा श्रवणबेलगोला की गोम्मट स्वामी की प्रतिमा की १३ मार्च ६८१ में स्थापना होने के कारण, प्रस्तुत महाकाव्य का रचनाकाल ६७०९७५ के मध्य माना गया है ।
चन्द्रप्रभ चरित में १८ सर्ग हैं। प्रारम्भ में मङ्गलाचरण के अनन्तर सज्जनप्रशंसा एवं दुर्जनाभिनन्दन किया गया है।४ चन्द्रप्रभचरित महाकाव्य में महाकाव्य विषयक सभी लक्षण पूर्णतः चरितार्थ होते हैं। (५) असगकृत वर्धमानचरित (९८८ ई.)
महाकवि असगकृत वर्धमानचरित महाकाव्य की प्रशस्ति के अनुसार इस महाकाव्य का रचना काल शक संवत् ११० अर्थात् १८२ ई० उल्लिखित है।५ कहा जाता है कि महाकवि असग ने चोल राज श्रीनाथ के राज्यकाल में लगभग पाठ ग्रन्थों की रचना की थी उनमें वर्धमान चरित भी एक था। दूसरे, डा० नेमिचन्द्र शास्त्री महोदय के मतानुसार असग ने हरिचन्द्र के धर्मशर्माभ्युदय (१०वीं शती) का अनुसरण किया था। इन सभी प्रमाणों के आधार पर वर्धमानचरित महाकाव्य का रचनाकाल ६८८ ईस्वी अर्थात् दसवीं शताब्दी होना समुचित जान पड़ता है।
वर्धमान चरित महाकाव्य में कुल १८ सर्ग हैं तथा इसमें वर्धमान महावीर का जीवनचरित्र चित्रित किया गया है। महाकाव्य के नायक महावीर हैं तथा
१. चन्द्रप्रभचरित, प्रशस्ति, पद्य-१ २. चन्द्रप्रभाभिसम्बद्धा रसपुष्टा मनः प्रियम् ।
कुमुद्वतीव नो धत्ते भारती वीरनन्दिनः ।।-पार्व०, १.३० ३. नेमिचन्द शास्त्री, संस्कृत काव्य०, पृ० ७७ ४. चन्द्र० १.१-८ ५. तु०-संवत्सरे दशनवोत्तरयुक्ते--वर्ध०, १८.१०४ ६. धर्म० १०.११ तथा वर्ष०, ५.५ ७. नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य०, पृ० १३६