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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज 'सामन्त' राजा स्वतन्त्र होने की चेष्टाएं प्रारम्भ कर देते हैं ।' ये राजा के लिए समय-समय पर उपहार प्रादि ले जाते थे । २ 'सामन्त' राजा राज्य के महत्त्वपूर्ण अवसरों पर राज-सभा में उपस्थित रहते थे। सम्भवतः 'माण्डलिक' तथा 'सामन्त' राजा एक ही रहे होंगे। महाकाव्यों के टीकाकार 'माण्ड लिक' तथा 'सामन्त' दोनों का ही 'राजा' अर्थ करते हैं। राज्य सीमा के विविध मण्डलों के स्वामी होने के कारण इन्हें 'माण्ड लिक' कहा जाता होगा।५ इन 'माण्डलिक' राजाओं के स्वामी के लिए प्राय: ‘मण्डलेश्वर' तथा 'महामण्डलेश्वर' का प्रयोग होता है। इसी प्रकार ‘महासामन्त' आदि भी पद थे । 'सामन्त' तथा 'माण्डलिक' राजामों का यह कर्तव्य था कि वे राजा के साथ युद्ध में भी जाएं। चन्द्रप्रभ० के उल्लेखानुसार युद्ध के लिए दीक्षित सामन्तों को राजा उपहार प्रादि से सन्तुष्ट करता था।' युद्ध के अवसर पर एक राजा के 'सामन्त' प्रायः दूसरे राजा के सामन्तों के साथ ही युद्ध करते थे। इस प्रकार महाकाव्यों के पौराणिक राजामों के सन्दर्भ में तत्कालीन इतिहास सम्मत राजनैतिक परिस्थितियों के अनुकूल ही राजानों तथा सामन्तादि के वर्णन उपलब्ध होते हैं । बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी से सम्बन्धित
१. तु० -स्वातन्त्र्यं ययुरखिलानि मण्डलानि मन्दत्वं भवति न कस्य वाभिभूत्यै ।
-चन्द्र०, १६.२३ २. चन्द्र०, ५.५२ ३. तु० -{क) अमात्य-सेनापतिमन्त्रिपुत्राः सुताश्च सामन्तनरेश्वराणाम् ।
-वराङ्ग०, २८.१२ (ख) ये मन्त्रिणो येऽत्र मण्डलीकास्तेषु क्रमो नास्ति पराक्रमोऽस्ति ।
-कीर्ति०, २.६५ (ग) श्रीमद्भिर्न पसामन्तैः पृष्ठतः पार्वतोऽग्रतः । आपतद्भिः शोभमानो, ग्रहराजो ग्रहैरिव ।।।
-त्रिषष्टि०, २.१.१४० ४. तु. चन्द्र० १५.१२ पर तथा ५.५२ पर विद्वन्मनोवल्लभाटीका
सामन्तान्-भूपतीन् । मण्डलिनां-भूभृताम् ।' ५. तु०-मण्डलपतीन् । चन्द्र०, ३.७ ६. Sharma, Dashratha, Rajasthan Through The Ages, p. 359 ७. वही, पृ० ३०६ ८. चन्द्र०, १५.१२ ६. वही १०. चन्द्र०, १५.७५-६५