Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 635
________________ विषयानुक्रमणिका आगम ग्रन्थों में २४२, २४३, . इहलौकिक सुख ४०२ जैन संस्कृत महाकाव्यों में २४३, ईख उत्पादन २१२ तीन प्रमुख प्रावास चेतनाएं एक स्वतंत्र व्यवसाय २१२, २४३, बारह प्रकार के भेद वनों-उद्यानों में ईख उत्पादन २४४-२६४, आवासीय संस्थिति २१२, लाल ईख की विशेष के रूप में निगम २५३-२५६, पैदावार ईख का नगरों में २६४-२६१, द्रष्टव्य-प्राकर, पायात २१२ इक्षु यंत्रों द्वारा कर्वट, खेट, ग्राम, घोष, द्रोण गुड़ उत्पादन २१२ मुख, नगर, निगम, पत्तन, ईखों के वन २१२ मडम्ब, राजधानी, सम्बाध ईश्वर (तत्त्व) ६६, ३१४, ३९८ प्राश्रम (शिक्षा केन्द्र) २५१, ४१६- ईश्वर (वाद) ३७६, ३८० ४२० उच्च विद्या २०२ प्राव (तत्त्व) ३८४, ३८६, ३६० उत्तम (पद) १३२, १३३ परिभाषा ३८६, कार्माण वर्ग उत्तराधिकार ८८, ६१, ६५, १०७, णामों का आत्मा में संसूचन, ३८६, 'पुण्याश्रव' तथा 'पापा उत्तरायण ३५६ श्रव' ३८६, प्राश्रव के स्वामी उत्तरी भारत ६६, ३४४ ३८६, यह संसार का मूल उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य ३८०, ३८२, कारण ३८६ ३८४, ३८५ प्राषाढ ३४८, ३४६ उत्सर्ग ३६३ प्रासन ७५, १५.०, १६२ उत्सर्पिणीकाल ३५६, ३५७ पासम २४२, २८० उत्सव-महोत्सव १९६, २००, २४६, मास्तिक दर्शन ३१६, ३८०, ३६२ प्रास्थाप्रधान दर्शन ३७५ उत्साह (शक्ति) ७३, ७४, १५० पाहत योद्धा १६७ उद्दण्ड राजा १५१, १५२ आहार चार प्रकार के ३२८ उद्यान ३२, ३३, १२१, २१२-२१५, इक्षुयन्त्र २१२, २५४, ३८६ २३८, २५६, ३४१, ३६४ इन्द्र (देव) ३१, ३७, ३१६, ३७० उद्यानपाल (बनारक्षी) १२१, २१४, ३७१ २३३ पा० २३४ इन्द्रिय सन्निकर्ष ३८१ उद्यान (व्यवसाय) २१३-२१५ . इमिटेटिव एपिक ३७ सामाजिक उपादेयता २१४, ईम्पोर्टिग एण्ड एक्सपोर्टिग २६१. धार्मिक प्रवचन स्थल २१४,

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