Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 642
________________ ६०८ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज २४७ कोटिमहायज्ञ ३६८ क्रय-विक्रय २२४, २२७, २२६, कोडिय १३४, १३८, १४२ कोडिय (गण) १३५, १३६ क्षणिकवाद ३७६, ३६७, ३१८ कोडियो/कोंडिपो १३४, १३८, १४० भावों तथा पदार्थों की क्षणिकता कोडी १३४ ३६७, जटासिंह द्वारा आलोचना कोडुक्कपिल्लं (पद) १४१, १४२ ३६८, लोक व्यवस्था छिन्नकोम्बियो १३४ भिन्न हो जाने का प्राक्षेप ३६८, कोल्हू २३६ चित्त-सन्तान-ज्ञानधारा की कोशशास्त्र १३७ अनुपपन्नता ३९८ कोश ग्रन्थ २६६, २८२, २८३, क्षत्रिय १३, २५, २६, ७२, १५६, ३११ २०२, २०४, २०६, २०७, कोष ७०, ८५, ६, ८, ६६, २४१, ३१६, ३१८, ३२१ ११४, १६१ इनका मुख्य व्यवसाय युद्धकर्म कोषगृह २५२ २०६, छह प्रकार की सेनामों में कोषबल ७३ :मोल' सेना के अन्तर्गत स्थान कोषसंचय ६६, ७७, ९७-९६, १४६, १५६, २०६ क्षत्रिय युद्ध २०६ कोषागारिक (पद) ७२, ८३ क्षत्रिय वर्ग २०६, २४१, ४०७, कोषाध्यक्ष (पद) ११४ ।। ४०८ कौटिल्य कालीन नारी ४६३, निम्न क्षत्रियों की शिक्षा ४२५, ४२६ विवाह संस्था की वैधानिकता क्षत्रियों के व्यवसाय २०६-२०७, पर बल ४६३, गुप्तचर विभाग २४१, ४२६ में स्त्री कर्मचारी ४६३, वर्ग क्षितिपति ८४ । की स्त्रियों का आर्थिक उत्थान क्षितिभुज ८४ ४६३ क्षितीन्द्र ८३ कौटुम्बिक/कोम्बिका १३६, १२६ क्षीणकषाय ३६२ . कौटुम्बिया १२६ क्षीर-नीर-न्याय ४१६ कोडुम्बिय १३६, १३८ क्षेत्रकर १३२, १३३ कौण्डिन्य (गोत्र) ३१७ क्षेत्राजीवः १३७.. कोत्स (गोत्र) ३१७ क्षेप्यो अग्नियोग विधि १८२, १८३ कौलिक (जाति) २७७ खड्ग-सदृश प्रायुध १६८; १७५, कौशिक (गोत्र) ३६७

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