Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 668
________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज के ग्रन्थों में २८५-२८६, स्मृति/ निगम बस्तियां - निबन्ध ग्रन्थों में २८७, २८८, कारीगरों की २८६, शिल्पियों २६१, दक्षिण भारत में २८८- .. को २८६, नैगमों की २८२, २६०, निष्कर्ष २६०-२६१ वरिणकों की २७९, २८२, निगम का दान २७३ व्यापारियों की २८२, २८६, निगम का प्रधान २६७ कृषकों की २४४, २४५, २५५, निगम का मुखिया २६७ २५६, अहीर प्रादि जातियों की निगम का सेठ २७६ . २४३, २५५, २७८, कुरु-शाक्य आदि जातियों की २७५, इनमें निगम के विविध अर्थ चारों वर्णों का निवासः २८६, व्यापारिक समिति २६४, २६५ २८७ पा० २६६, २७७, व्यापारियों का निगम मुख्य २६७ सामूहिक संगठन २६४, २६८, निगमवृद्ध २६७ . २७२, २७३, २७५, कॉरपो निगमस २७४ . . रेशन २६५, चैम्बर ऑफ कॉमर्स . निगमसभा २७२, २७४, २६० ३६५, नगर २६४, २६५, इसमें पञ्जीकरण २७४ २७२-२७४, नपभोग्य-नगर । निगमस्य २७४ २७९. २८०, नगरभेदकसंस्थिति निगमागम २६१ २६६, २७२, २८२, ग्राम २४४ निगमागमदान २६१ २४५,२५३, २५५, २७१. __ निगमाः २५५, २७१, २९० २७४, कृषि ग्राम २५६, भक्त निगमे २७१ ग्राम २४४, २४५, २५५, निगमों का वास्तुशिल्प व्यापारिक ग्राम २४३, २५६, पच्चीस ग्रामों का समूह २८४, . २८१-२८४, २८५, २६१, पत्तन का प्राधा भाग २८४, व्यापार मार्ग २७१, २८४, ग्राम तुल्य २४५, २५३-२५६, वेदविद्या २७१, २६०, छन्द २८६, २६१, नृपभोग्य-नगर तुल्य २८५, वन-पर्वतादि से निगम ग्राम २१२, २२२, २५४, रक्षित २८५, इनके खलिहान २५५, २७८, ३११ २१०, २५६, इनमें अनाज निगम चेतना २४३, २५३, २५५ भण्डार २८९, २६१ इनमें निगम-दक्षिण भारत के २८८ बाजार, न्यायालय, ऊंचे महल निगम नगर २८५, २८७ पा० प्रादि की सुविधाएं २८५, पत्तन क

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