Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 701
________________ विषयानुक्रमणिका परिभद्र १८३, २१६ सरल (देवदारु) १८२, २१८, पिपली २२० २२८ प्रियङगु ३४१ सल्लकी (सलई) २१६ प्रियाल १८२, १८३, २१६ सुवर्ण (हरिचन्दन). २१८, प्रियाल चूर्ण १८२ ३४१ पुन्नाग (नागकेसर) २१५, २१७ सेफाली २२० ३४१ हरिताल ३१६ पूग (सुपारी) २१८ हिन्ताल २२० पूरी तृण १८२ वृक्ष उद्योग ६१३-२२१, २४०, प्लक्ष २२० ३०१, ५०८ बकुल २१६ इसका आर्थिक महत्त्व २१४बन्धक (मध्याह्न पुष्प) २१६, २१५, ३०१, इनसे भोग विलास ३४१ की सामग्रियों का उत्पादन बाण २२० २१५, २१६, लकड़ी उद्योग बांस १७०, १७४ २१५, सुगन्धित द्रव्य २१६, बिल्व (बेल) २१७, ३४१ २१७, ३००, सौन्दर्य प्रसाधन मधूक २२० की सामग्री, २१४, २१५, मरीचि (गोल मिर्च) २१८ ३००, ३०१, मेवे-मसालों का मल्लिका २१६, ३४१ उत्पादन २१६, मदिरा उत्पादन मातुलिंग (चिकोतरा) २१७, २१६, फल-फूलों का रस २१६, मालती २१५, २१६, ३४१ ।। वृक्षारोपण के विविध प्रकार मौलसिरी २१७ २१४-२२१, जैन धर्म में वृक्षोंरक्तकन्द (केशर) ३०१ वनस्पतियों को बेचना निषिद्ध लङ्गली २२० २३८ लवङ्ग (लोन) २१७, ३४१ वृक्षारोपण २१४, २१५ लवली २१६, २२० वेद १२, ३४, १३४, १६०, २८२, वासन्तिक (वासन्ती) २१६, २८४, २८५, ३१४, ३१७, ३४१ ३१८, ३२१, ३६८ शामी २२० वेदनीय ३६० शिरीष २१९ वेदप्रामाण्य ३१५, ३२०, ३२१, शितिध्र २२१ ४०४ श्रीवेष्टक १८२ वेद प्रामाण्य का विरोध ३१७सप्तपर्ण २२० ३१८

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